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एमपीएम अस्पताल में इलाज करवाना इस परिवार के लिए किसी दुस्वप्न से कम नही।
माता पिता न्याय के लिए लड़ रहे परंतु कोई मदद के लिए नही आ रहा आगे।
बेटी की हालत देखकर रोती हुई माँ इंसाफ की राह देखती हुई,एक ही मांग की दोषी डॉक्टर के ऊपर कठोर कार्यवाही की जाए।
बचेली यू तो डॉक्टर को भगवान का दर्जा प्राप्त है। परंतु इस डॉक्टर की लापरवाही कुछ और ही कहानी बयां करती है। हम बात कर रहे है दंतेवाड़ा के कटेकल्याण बस स्टैंड पारा में रह रहे ठाकुर परिवार की जो अपनी बेटी 12 वर्षीय हर्षिता ठाकुर की लाचारी को देखकर गहरे सदमे में जीवन जीने को मजबूर है । माता शालिनी ठाकुर के मुताबिक हर्षिता की सायकल से गिर जाने की वजह से बाएं हाँथ की कोहनी की हड्डी फेक्चर हो जाने बाद परिवार दंतेवाड़ा जिला अस्पताल गया,जहां बच्ची को रेफर कर दिया गया।
परिवार ने जगदलपुर के नामी गिरामी अस्पताल सोचकर एमपीएम में अपनी बेटी का इलाज करवाने का मन बनाया। लेकिन उन्हें क्या पता था कि जिस अस्पताल में वो अपनी बेटी हर्षिता का इलाज करवाने जा रहे है वो उनकी बेटी के लिए एक अभिशाप बन जाएगा। परिवार के लोग 3 अप्रैल 2019 को वो अपनी बेटी को लेकर एमपीएम अस्पताल गए जिसके बाद एमपीएम अस्पताल के डॉक्टर हड्डी रोग विशेषज्ञ सुनीत पॉल ने हर्षिता का ऑपरेशन किया जिसके बाद सप्ताह में एक बार फिजियोथेरेपी करवाने बुलाया गया।
हर्षिता को इस दौरान आराम नही मिल रहा था। फिजियोथेरेपी भी काम नही कर रही थी। जिसके बाद 6 जून को पुनः एमपीएम अस्पताल में हर्षिता को भर्ती करके 7 जून को फिर से दोबारा ऑपरेशन करने ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया जिसके बाद माता शालिनी ठाकुर का आरोप है कि हर्षिता की हड्डी को तोड़कर डाक्टर सुनीत पॉल बाहर आये एवं परिवार जनों से बोले कि हड्डी टूट गयी है। 12 जून डॉक्टर सुनीत पाल द्वारा हर्षिता का पुनः ऑपरेशन किया गया जो कि असफल रहा।
एवं हाँथ से पिन व वायर निकलने के लिए एक माह पश्चात बुलाया गया जिसके बाद जुलाई में हम बच्ची को लेकर गए जुलाई में वायर तथा पिन निकालने के बाद फिजियोथेरेपी में वापस हड्डी टूटने के बाद जब हमने डाक्टर से हाँथ जोड़कर मिन्नते की आप किसी भी तरह से मेरी बच्ची का हाँथ ठीक करदो तो डॉक्टर सुनीत पॉल ने गैरजिम्मेदाराना बयान देते हुए कहा कि आपकी बेटी ठीक हो ना हो मेरी कोई जिम्मेदारी नही बनती कहकर इस मामले में अपना पल्ला झाड़ लिया। जिसके बाद हम दोनों पति पत्नी शहर के दूसरे डाक्टर लखनलाल ठाकुर के पास गए तो उन्होंने एक्सरे देखकर बताया कि आपकी बेटी की हड्डी गलत तरीके से सेट की गई थी बार बार ऑपरेशन करने की वजह से इसका इलाज यहां संभव नही है।
आप किसी बड़े शहर जाकर इसका इलाज करवाइए। ये सुनकर परिवार टूट गया। स्मार्ट कार्ड से सारे पैसे बिना बिल दिए निकाले जा चुके थे उसके अलावा सवा लाख का बिल भी परिवार ने अदा किया था। इस घटना से आहत होने के बाद माता शालिनी ठाकुर ने घटना की शिकायत सम्भागीय आयुक्त जगदलपुर,कलेक्टर जगदलपुर, मुख्यचिकित्सा अधिकारी जगदलपुर,पुलिस अधीक्षक बस्तर,बोधघाट थाना प्रभारी जगदलपुर,स्वास्थ्य मंत्री छत्तीसगढ़, माननीय मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ को भी शिकायत पत्र दिया है।
जिसके बाद 4 सदस्यीय एक मेडिकल जांच कमिटी भी बिठाई गयी जिन्होंने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि सम्भवतः गलत ऑपरेशन की वजह से बच्ची का बायां हाँथ 35 प्रतिशत कार्य नही कर रहा है। माता पिता का बयान भी लिया गया। परंतु परिजनों के मुताबिक इस मामले में महीनों बीत जाने के बाद भी आज तक डाक्टर के ऊपर कोई कार्यवाही नही हुई है।
बच्ची हर्षिता स्वस्थ होते हुए भी एक हाँथ के साथ दिव्यांग होकर जीवन जीने को मजबूर है। माता शालिनी ठाकुर के मुताबिक न वो खाना खा पाती है ना नहा पाती है ना अपने दैनिक कार्य कर पाती है। बड़े शहर जाकर इलाज करवाना चाहते है लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नही होने की वजह से सम्भव नही है जो कुछ था वो एमपीएम अस्पताल में इलाज के दौरान खर्च हो गया।माता शालिनी ठाकुर एवं पिता जय प्रकाश ठाकुर लगातार बच्ची के साथ हुए अन्याय के लिए दर दर भटक रहे है परंतु इतनी शिकायतों के बाद भी आज तक आरोपी डॉक्टर के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कार्यवाही नही हुई है। महीनों बीत चुके इस मामले में संबंधित अधिकारियो की सुस्ती साफ नजर आ रही है।
इलाज के दौरान अक्सर मरीजों के साथ लापरवाही की घटना देखने और सुनने को मिलती है। यह एक तरह की चिकित्सीय उपेक्षा या लापरवाही होती है, जिसके कारण मरीज को शारीरिक और आर्थिक रूप से नुकसान होता है। डॉक्टर का अपने पेशेंट के प्रति यह कर्तव्य है कि वह उसकी देखभाल या इलाज के समय पर्याप्त कुशलता और ज्ञान का प्रयोग करे। ऐसा न करना चिकित्सीय उपेक्षा की श्रेणी में आता है।
प्राय: ऐसी गलती होने पर दीवानी न्यायालयों द्वारा इनका फैसला किया जाता है, हालांकि दोषी पाए जाने पर चिकित्सकों पर आपराधिक मामले भी दर्ज किए जा सकते हैं। यहां हम आपको उपरोक्त बातें इसलिए बता रहे हैं कि क्यों कि मरीजों के लिए संविधान ने कई अधिकार सुरक्षित किए हैं, जिनके बारे में प्रत्येक नागरिक को पता होना चाहिए। यहां ऐसे ही कुछ प्रमुख अधिकारों के बारे में हम आपको जानकारी दे रहे हैं।
चिकित्सकीय लापरवाही के प्रकार
चिकित्सकीय उपेक्षाएं कई विभिन्न प्रकार के स्वरूपों में हो सकती हैं
उपेक्षापूर्ण निदान
ऑपरेशन में लापरवाही
रोगी की शिकायत सुनने में असफल होना
गलत दवा का लापरवाही द्वारा दिया जाना
रोगी को इस प्रकार रखना जिससे उसे संक्रामक रोग का खतरा हो
ऑपरेशन के खतरे से लापरवाही द्वारा सलाह देना अथवा रोगी को इस प्रकार से खतरे की चेतावनी देने में असफल हो जाना
ऑपरेशन होने के बाद की स्थिति में लापरवाही करना
मरीज की ठीकतरह से निगरानी न करना या अस्पताल में कर्मचारियों के अभाव में निगरानी न होना आदि
मरीजों के चिकित्सीय अधिकार
1- जब डॉक्टर दवा देते समय उससे होने वाले दुष्परिणामों पर ध्यान न दे तो इसे उपेक्षापूर्ण कार्य कहा जा सकता है, इसके लिए डॉक्टर को दोषी ठहराया जा सकता है।
2- अगर डॉक्टर गलती से गलत दवा देता है तब भी वह दोषी माना जाएगा। साधारण लापरवाही भी दीवानी गलती मानी जाती है। पर जब व्यक्ति जानबूझ कर भी लापरवाही करता हो तो उसे गंभीर उपेक्षापूर्ण कार्य माना जाता है। ऐसे में यह एक आपराधिक दायित्व माना जाता है।
3 यदि किसी डॉक्टर के पास कोई मरीज आता है, तब उसका कर्तव्य बन जाता है कि वह मरीज को प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करे। यह उसका अधिकार है। इसके पश्चात ही वह मरीज को दूसरे अस्पताल में भेज सकता है।
4 कोई भी डॉक्टर चाहे वह फीस लेता हो या न लेता हो मगर दवा देने के बाद मरीज के प्रति उसकी पूरी जिम्मेदारी बनती है। अगर फीस न लेने की स्थिति में डॉक्टर द्वारा कोई लापरवाही बरती जाती है तो इसके लिए चिकित्सक जिम्मेदार होगा।
5 अगर ऑपरेशन के दौरान डॉक्टर से कोई भूल हो जाती है तो भी उसके लिए चिकित्सक जिम्मेदार माना जाएगा। जैसे यदि कोई डॉक्टर किसी विशेष अंग का ऑपरेशन कर रहा है और उससे किसी दूसरे अंग को नुकसान पहुंचता है तो इसके लिए डॉक्टर जिम्मेदार होगा। उसे दोषी माना जाएगा।
दंतेवाड़ा - जगदलपुर एमपीएम हॉस्पिटल के डॉक्टर द्वारा गलत इलाज का दंश झेलती दंतेवाड़ा की 12 वर्षीय बिटिया।
बेटी की हालत देखकर रोती हुई माँ इंसाफ की राह देखती हुई,एक ही मांग की दोषी डॉक्टर के ऊपर कठोर कार्यवाही की जाए।
बचेली यू तो डॉक्टर को भगवान का दर्जा प्राप्त है। परंतु इस डॉक्टर की लापरवाही कुछ और ही कहानी बयां करती है। हम बात कर रहे है दंतेवाड़ा के कटेकल्याण बस स्टैंड पारा में रह रहे ठाकुर परिवार की जो अपनी बेटी 12 वर्षीय हर्षिता ठाकुर की लाचारी को देखकर गहरे सदमे में जीवन जीने को मजबूर है । माता शालिनी ठाकुर के मुताबिक हर्षिता की सायकल से गिर जाने की वजह से बाएं हाँथ की कोहनी की हड्डी फेक्चर हो जाने बाद परिवार दंतेवाड़ा जिला अस्पताल गया,जहां बच्ची को रेफर कर दिया गया।
मुख्य मंत्री महोदय को माता शालिनी ठाकुर द्वारा दिया गया है शिकायत पत्र ।
परिवार ने जगदलपुर के नामी गिरामी अस्पताल सोचकर एमपीएम में अपनी बेटी का इलाज करवाने का मन बनाया। लेकिन उन्हें क्या पता था कि जिस अस्पताल में वो अपनी बेटी हर्षिता का इलाज करवाने जा रहे है वो उनकी बेटी के लिए एक अभिशाप बन जाएगा। परिवार के लोग 3 अप्रैल 2019 को वो अपनी बेटी को लेकर एमपीएम अस्पताल गए जिसके बाद एमपीएम अस्पताल के डॉक्टर हड्डी रोग विशेषज्ञ सुनीत पॉल ने हर्षिता का ऑपरेशन किया जिसके बाद सप्ताह में एक बार फिजियोथेरेपी करवाने बुलाया गया।
जिसके बाद 4 सदस्यीय एक मेडिकल जांच कमिटी भी बिठाई गयी जिन्होंने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि सम्भवतः गलत ऑपरेशन की वजह से बच्ची का बायां हाँथ 35 प्रतिशत कार्य नही कर रहा है। माता पिता का बयान भी लिया गया। परंतु परिजनों के मुताबिक इस मामले में महीनों बीत जाने के बाद भी आज तक डाक्टर के ऊपर कोई कार्यवाही नही हुई है।
बच्ची हर्षिता स्वस्थ होते हुए भी एक हाँथ के साथ दिव्यांग होकर जीवन जीने को मजबूर है। माता शालिनी ठाकुर के मुताबिक न वो खाना खा पाती है ना नहा पाती है ना अपने दैनिक कार्य कर पाती है। बड़े शहर जाकर इलाज करवाना चाहते है लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नही होने की वजह से सम्भव नही है जो कुछ था वो एमपीएम अस्पताल में इलाज के दौरान खर्च हो गया।माता शालिनी ठाकुर एवं पिता जय प्रकाश ठाकुर लगातार बच्ची के साथ हुए अन्याय के लिए दर दर भटक रहे है परंतु इतनी शिकायतों के बाद भी आज तक आरोपी डॉक्टर के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कार्यवाही नही हुई है। महीनों बीत चुके इस मामले में संबंधित अधिकारियो की सुस्ती साफ नजर आ रही है।
इलाज के दौरान अक्सर मरीजों के साथ लापरवाही की घटना देखने और सुनने को मिलती है। यह एक तरह की चिकित्सीय उपेक्षा या लापरवाही होती है, जिसके कारण मरीज को शारीरिक और आर्थिक रूप से नुकसान होता है। डॉक्टर का अपने पेशेंट के प्रति यह कर्तव्य है कि वह उसकी देखभाल या इलाज के समय पर्याप्त कुशलता और ज्ञान का प्रयोग करे। ऐसा न करना चिकित्सीय उपेक्षा की श्रेणी में आता है।
प्राय: ऐसी गलती होने पर दीवानी न्यायालयों द्वारा इनका फैसला किया जाता है, हालांकि दोषी पाए जाने पर चिकित्सकों पर आपराधिक मामले भी दर्ज किए जा सकते हैं। यहां हम आपको उपरोक्त बातें इसलिए बता रहे हैं कि क्यों कि मरीजों के लिए संविधान ने कई अधिकार सुरक्षित किए हैं, जिनके बारे में प्रत्येक नागरिक को पता होना चाहिए। यहां ऐसे ही कुछ प्रमुख अधिकारों के बारे में हम आपको जानकारी दे रहे हैं।
चिकित्सकीय लापरवाही के प्रकार
चिकित्सकीय उपेक्षाएं कई विभिन्न प्रकार के स्वरूपों में हो सकती हैं
उपेक्षापूर्ण निदान
ऑपरेशन में लापरवाही
रोगी की शिकायत सुनने में असफल होना
गलत दवा का लापरवाही द्वारा दिया जाना
रोगी को इस प्रकार रखना जिससे उसे संक्रामक रोग का खतरा हो
ऑपरेशन के खतरे से लापरवाही द्वारा सलाह देना अथवा रोगी को इस प्रकार से खतरे की चेतावनी देने में असफल हो जाना
ऑपरेशन होने के बाद की स्थिति में लापरवाही करना
मरीज की ठीकतरह से निगरानी न करना या अस्पताल में कर्मचारियों के अभाव में निगरानी न होना आदि
मरीजों के चिकित्सीय अधिकार
1- जब डॉक्टर दवा देते समय उससे होने वाले दुष्परिणामों पर ध्यान न दे तो इसे उपेक्षापूर्ण कार्य कहा जा सकता है, इसके लिए डॉक्टर को दोषी ठहराया जा सकता है।
2- अगर डॉक्टर गलती से गलत दवा देता है तब भी वह दोषी माना जाएगा। साधारण लापरवाही भी दीवानी गलती मानी जाती है। पर जब व्यक्ति जानबूझ कर भी लापरवाही करता हो तो उसे गंभीर उपेक्षापूर्ण कार्य माना जाता है। ऐसे में यह एक आपराधिक दायित्व माना जाता है।
3 यदि किसी डॉक्टर के पास कोई मरीज आता है, तब उसका कर्तव्य बन जाता है कि वह मरीज को प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करे। यह उसका अधिकार है। इसके पश्चात ही वह मरीज को दूसरे अस्पताल में भेज सकता है।
4 कोई भी डॉक्टर चाहे वह फीस लेता हो या न लेता हो मगर दवा देने के बाद मरीज के प्रति उसकी पूरी जिम्मेदारी बनती है। अगर फीस न लेने की स्थिति में डॉक्टर द्वारा कोई लापरवाही बरती जाती है तो इसके लिए चिकित्सक जिम्मेदार होगा।
5 अगर ऑपरेशन के दौरान डॉक्टर से कोई भूल हो जाती है तो भी उसके लिए चिकित्सक जिम्मेदार माना जाएगा। जैसे यदि कोई डॉक्टर किसी विशेष अंग का ऑपरेशन कर रहा है और उससे किसी दूसरे अंग को नुकसान पहुंचता है तो इसके लिए डॉक्टर जिम्मेदार होगा। उसे दोषी माना जाएगा।
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