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दंतेवाड़ा / केंद्र सरकार -यूपीए कार्यकाल में बने वन अधिकार कानून में भूपेश सरकार द्वारा अनावश्यक बदलाब करना गलत- मोर्चा।
वन अधिकार पट्टा हेतु आदिम जाति विभाग को बनाया था नोडल एजेंसी केंद्र की मनमोहन सरकार ने - बस्तर अधिकार संयुक्त मुक्ति मोर्चा।
भूपेश सरकार द्वारा वन विभाग को ही वन अधिकार कानून क्रियान्वयन हेतु नोडल अधिकारी नियुक्त करना, बिल्ली को दूध की रखवाली देने जैसा।
राज्य में लाखों व बस्तर में हजारों वन वासीयो को अब तक नही मिल पाया है। वन अधिकार पट्टा, ऐसे में राज्य का नया कानून में बदलाव ग्राम सभा के अधिकारों पर नियंत्रण जैसा षडयंत्र।
बस्तर में लंबित व निरस्त दावों पर पुनः विचार कर कानून में बिना बदलाव किए वनवासियों को वन पट्टा वितरण करे सरकार- मोर्चा
नवनीत चांद बस्तर अधिकार आयुक्त मुक्ति मोर्चा
बचेली/दंतेवाड़ा - केंद्र की मनमोहन सरकार के वन अधिकार कानून को छ.ग की भूपेश सरकार ने बदल कर राज्य के वनवासियों के समक्ष नई परेशानी खड़ी कर दी है। भूपेश सरकार ने वन अधिकार कानून की निपक्षता पर प्रतिघात करते हुए। वन अधिकार पट्टों पर हितग्राहियों के अधिकारों के ऊपर आपत्ति लगाने वाले वन विभाग को ही नोडल एजेंसी बना दिया है। जो पूरी तरह केंद्र सरकार के वन अधिकार कानून प्रावधानों के साथ खिलवाड़ करना है। केंद्र की मनमोहन सरकार के द्वारा वन अधिकार कानून में ज्यादा से ज्यादा हितग्राहियों को लाभ पहुचाने के उद्देश्य से आदिम जाति विभाग को नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त किया था । ताकि वनवासी व आदिवासीयो को उनके अधिकृत भूमि का पट्टा दे भूस्वामी बनाया जा सके। जिसके लिए केंद्र के आदिवासी कार्य मंत्रालय द्वारा 27 सितंबर 2007ओर 11जनवरी 2008 को राज्यो को लिखे पत्र में जोर देते हुए लिखा था कि आदिवासी विकास विभाग की नोडल एजेंसी होगा । भूपेश सरकार का यह प्रयास मनमोहन सरकार के आदेश व कानून की परिकल्पना की अवहेलना है। बस्तर अधिकार सयुक्त मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता नवनीत चाँद ने भूपेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि ,कांग्रेस सरकार विधानसभा चुनाव के दौरान वनाधिकार कानून के सुचारू क्रियान्वयन का वादा किया था। लेकिन नए आदेश में सरकार कानून के मूलभूत विचारों और प्रावधानों के खिलाफ जाती नजर आ रही है। मोर्चा ने आशंका जाहिर की है कि वन विभाग सयुक्त वन प्रबंधन समितियों के जरिये ग्राम सभा के अधिकारों का हनन करके अपने एजेंडे को आगे बढ़ाएगी। इस से समाज मे सरकार व कानून के प्रति अविश्वसनीयता व विरोध बढेगा,इस लिए मनमोहन सरकार ने इस बात को ध्यान में रख कानून के लाभ की निष्पक्षता को बनाये रखने हेतु आदिम जाति विभाग को नोडल एजेंसी बनाया था। मनमोहन सरकार ने कानून में विशेष ध्यान देते हुए सामुदायिक वन अधिकार को मान्यता,विशेषकर ग्राम सभाओं की और से वन का प्रबंधन करने के अधिकारों को सुनिश्ति करने की प्रतिबद्धता दिखाई थी। लेकिन भपेश सरकार के ताजा बदलाव का वन ग्राम वासियो द्वारा विरोध प्रारम्भ हो गया है। मोर्चा सरकार से मांग करता है। कि व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकारों की पूर्ण मान्यता होते तक वन भूमि से विस्थापन या धारित भूमि का अधिग्रहण या पुनर्वास पैकेज का प्रस्ताव नही दिया जाना चाहिए। वही वन -विभाग को वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन में बाधा पहुचाने या भटकाव लाने के प्रयत्नों को अलग रखना चाहिये। वही बस्तर संभाग में वन अधिकार पट्टों के लंबित व निरस्त मामलों पर पुनः विचार कर हितग्राहियों को वन अधिकार पट्टा वितरण किया जाए। बस्तर अधिकार सयुक्त मुक्ति मोर्चा देश के प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री व राज्यपाल को पत्र लिख, वन अधिकार के नोडल एजेंसी को न बदलने की मांग करते हुए,कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित जिला स्तरीय समिति को अधिकार पत्र प्रदाय करने की जिमेदारियो दी जाने की मांग करेगी।क्योंकि इन समितियो द्वारा दावों को खारिज करने या लटकाने की भूमिका ज्यादा रहती है। न कि ग्राम सभाओं के दावों को सुधारने और सबूतों को जुटाने में मदद करने में।
नावनीत चांद बस्तर अधिकार संयुक्त मुक्ति मोर्चा।
दंतेवाड़ा / केंद्र सरकार -यूपीए कार्यकाल में बने वन अधिकार कानून में भूपेश सरकार द्वारा अनावश्यक बदलाब करना गलत- मोर्चा।
वन अधिकार पट्टा हेतु आदिम जाति विभाग को बनाया था नोडल एजेंसी केंद्र की मनमोहन सरकार ने - बस्तर अधिकार संयुक्त मुक्ति मोर्चा।
भूपेश सरकार द्वारा वन विभाग को ही वन अधिकार कानून क्रियान्वयन हेतु नोडल अधिकारी नियुक्त करना, बिल्ली को दूध की रखवाली देने जैसा।
राज्य में लाखों व बस्तर में हजारों वन वासीयो को अब तक नही मिल पाया है। वन अधिकार पट्टा, ऐसे में राज्य का नया कानून में बदलाव ग्राम सभा के अधिकारों पर नियंत्रण जैसा षडयंत्र।
बस्तर में लंबित व निरस्त दावों पर पुनः विचार कर कानून में बिना बदलाव किए वनवासियों को वन पट्टा वितरण करे सरकार- मोर्चा
नवनीत चांद बस्तर अधिकार आयुक्त मुक्ति मोर्चा
बचेली/दंतेवाड़ा - केंद्र की मनमोहन सरकार के वन अधिकार कानून को छ.ग की भूपेश सरकार ने बदल कर राज्य के वनवासियों के समक्ष नई परेशानी खड़ी कर दी है। भूपेश सरकार ने वन अधिकार कानून की निपक्षता पर प्रतिघात करते हुए। वन अधिकार पट्टों पर हितग्राहियों के अधिकारों के ऊपर आपत्ति लगाने वाले वन विभाग को ही नोडल एजेंसी बना दिया है। जो पूरी तरह केंद्र सरकार के वन अधिकार कानून प्रावधानों के साथ खिलवाड़ करना है। केंद्र की मनमोहन सरकार के द्वारा वन अधिकार कानून में ज्यादा से ज्यादा हितग्राहियों को लाभ पहुचाने के उद्देश्य से आदिम जाति विभाग को नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त किया था । ताकि वनवासी व आदिवासीयो को उनके अधिकृत भूमि का पट्टा दे भूस्वामी बनाया जा सके। जिसके लिए केंद्र के आदिवासी कार्य मंत्रालय द्वारा 27 सितंबर 2007ओर 11जनवरी 2008 को राज्यो को लिखे पत्र में जोर देते हुए लिखा था कि आदिवासी विकास विभाग की नोडल एजेंसी होगा । भूपेश सरकार का यह प्रयास मनमोहन सरकार के आदेश व कानून की परिकल्पना की अवहेलना है। बस्तर अधिकार सयुक्त मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता नवनीत चाँद ने भूपेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि ,कांग्रेस सरकार विधानसभा चुनाव के दौरान वनाधिकार कानून के सुचारू क्रियान्वयन का वादा किया था। लेकिन नए आदेश में सरकार कानून के मूलभूत विचारों और प्रावधानों के खिलाफ जाती नजर आ रही है। मोर्चा ने आशंका जाहिर की है कि वन विभाग सयुक्त वन प्रबंधन समितियों के जरिये ग्राम सभा के अधिकारों का हनन करके अपने एजेंडे को आगे बढ़ाएगी। इस से समाज मे सरकार व कानून के प्रति अविश्वसनीयता व विरोध बढेगा,इस लिए मनमोहन सरकार ने इस बात को ध्यान में रख कानून के लाभ की निष्पक्षता को बनाये रखने हेतु आदिम जाति विभाग को नोडल एजेंसी बनाया था। मनमोहन सरकार ने कानून में विशेष ध्यान देते हुए सामुदायिक वन अधिकार को मान्यता,विशेषकर ग्राम सभाओं की और से वन का प्रबंधन करने के अधिकारों को सुनिश्ति करने की प्रतिबद्धता दिखाई थी। लेकिन भपेश सरकार के ताजा बदलाव का वन ग्राम वासियो द्वारा विरोध प्रारम्भ हो गया है। मोर्चा सरकार से मांग करता है। कि व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकारों की पूर्ण मान्यता होते तक वन भूमि से विस्थापन या धारित भूमि का अधिग्रहण या पुनर्वास पैकेज का प्रस्ताव नही दिया जाना चाहिए। वही वन -विभाग को वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन में बाधा पहुचाने या भटकाव लाने के प्रयत्नों को अलग रखना चाहिये। वही बस्तर संभाग में वन अधिकार पट्टों के लंबित व निरस्त मामलों पर पुनः विचार कर हितग्राहियों को वन अधिकार पट्टा वितरण किया जाए। बस्तर अधिकार सयुक्त मुक्ति मोर्चा देश के प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री व राज्यपाल को पत्र लिख, वन अधिकार के नोडल एजेंसी को न बदलने की मांग करते हुए,कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित जिला स्तरीय समिति को अधिकार पत्र प्रदाय करने की जिमेदारियो दी जाने की मांग करेगी।क्योंकि इन समितियो द्वारा दावों को खारिज करने या लटकाने की भूमिका ज्यादा रहती है। न कि ग्राम सभाओं के दावों को सुधारने और सबूतों को जुटाने में मदद करने में।
नावनीत चांद बस्तर अधिकार संयुक्त मुक्ति मोर्चा।
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