बचेली - गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस पर कोरोना वारियर्स को सिख समाज के लोगो ने पिलाया शीतल पेय पदार्थ। dm soni bacheli

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बचेली - गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस पर कोरोना वारियर्स को सिख समाज के लोगो ने पिलाया शीतल पेय पदार्थ। 

सिख धर्म के पहले शहीद जिन्होंने जान कुर्बान की और जाते जाते कह गए ये लफ्ज़। 



बचेली - लौह नगरी में आज गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी दिवस बड़े ही शालीनता से मनाया गया। सिख धर्म के लोगो ने अपने अपने घरों में अरदास की साथ ही सिख समाज के युवाओं द्वारा नगर में कोरोना योद्धाओं को नवतपे की भीषण गर्मी में राहत पहुंचाते हुए शीतल पेय पदार्थ का वितरण किया गया। युवाओ के द्वारा थाना परिसर,न्यायालय परिसर,अपोलो अस्पताल, सेंट्रल वर्कशाप,नगरपालिका आदि स्थानों पर शीतल पेय पदार्थ का वितरण किया गया। इस कार्यक्रम में सिख समाज के श्री सुखविंदर सिंह,गगन प्रीत सिंह सग्गू,महेंद्र सिंह,गुनवित सिंह उपस्थित रहे। 



आपको बता दे की  गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पाचंवे नानक कहलाते थे। उनके पिता श्री गुरु रामदास जी (चौथे गुरु) थे और माता भानी जी थीं। गुरु जी का जन्म वैशाख सदी 7 सम्वत 1620 में (15 अप्रैल, 1563 ई.) गोइंदवाल साहिब में हुआ था। मुग़ल बादशाह अकबर की मौत के बाद उसका पुत्र जहांगीर अगला मुग़ल बादशाह बना। अपने पिता के सूझबूझ वाले रवैये और समझदरी से ठीक विपरीत जहाँगीर बेहद घमंडी और दुष्ट शासक था। 





वह पूरे मुल्क पर अपना ही राज चाहता है परन्तु सिख धर्म के गुरु, गुरु अर्जन देव जी की बढ़ती हुई लोकप्रियता उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। उसे यह खौफ सताने लगा की जिस तरह से गुरु जी लोक भलाई करके सबका दिल जीत रहे हैं, इसी तरह से वे पूरे देश पर राज कर लेंगे। उनकी इसी सफलता से आहत होकर जहांगीर ने उन्हें शहीद करने का फैसला कर लिया। 



श्री गुरु अर्जुन देव जी को लाहौर बुलाया गया. मई महीने के चिलमिलाती हुई गर्मी में उन्हें लोहे के गर्म तवे पर बिठाया गया।  तवे के नीचे आग जलाई गयी और ऊपर से गुरु जी के शरीर पर गर्म-गर्म रेत भी डाली गयी। जब गुरु जी का शरीर अग्नि के कारण बुरी तरह से जल गया तो उन्हें पास ही रावी नदी के ठंडे पानी में नहाने के लिए भेजा गया। कहते हैं गुरु जी दरिया में नहाने के लिए उतरे तो लेकिन कुछ ही क्षणों में उनका शरीर रावी में आलोप हो गया। 



जिस स्थान पर गुरु जी ने अपने अंतिम दर्शन दिए थे आज उस स्थान पर गुरुद्वारा डेरा साहिब (जो की अब पाकिस्तान में है) सुशोभित है। गुरु जी ने अपने पूरे जीवनकाल में शांत रहना सीखा और लोगों को भी हमेशा नम्रता से पेश आने का पाठ पढ़ाया। यही कारण है की गर्म तवे और गर्म रेत के तसीहें सहते हुए भी उन्होंने केवल उस परमात्मा का शुक्रिया किया और कहा की तेरी हर मर्जी में तेरी रजा है और तेरी इस मर्जी में मिठास भी है। गुरु जी के आख़िरी वचन थे-

 तेरा कीया मीठा लागै॥
हरि नामु पदार्थ नानक मांगै॥

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