Nishpaksh media Junction bacheli खबर वही जो हो सही dm सोनी
सिंधुताई अपने और अपनी बच्ची की भूख मिटाने के लिए ट्रेन में गा गाकर भीख मांगने लगी। जल्द ही उसने देखा कि स्टेशन पर और भी कई बेसहारा बच्चे है जिनका कोई नहीं है। सिंधुताई अब उनकी भी माई बन गयी। भीख मांगकर जो कुछ भी उन्हें मिलता, वे उन सब बच्चों में बाँट देती। कुछ समय तक तो वो शमशान में रहती रही, वही फेंके हुए कपडे पहनती रही। फिर कुछ आदिवासियों से उनकी पहचान हो गयी।
वे उनके हक़ के लिए भी लड़ने लगी और एक बार तो उनकी लढाई लड़ने के लिए वे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक भी पहुँच गयी। अब वे और उनके बच्चे इन आदिवासियों के बनाये झोपड़े में रहने लगे। धीरे धीरे लोग सिंधुताई को माई के नाम से जानने लगे और स्वेच्छा से उनके अपनाये बच्चों के लिए दान देने लगे।
अब इन बच्चों का अपना घर भी बन चूका था। धीरे धीरे सिंधुताई और भी बच्चों की माई बनने लगी। ऐसे में उन्हें लगा कि कही उनकी अपनी बच्ची, ममता के रहते वे उनके गोद लिए बच्चों के साथ भेदभाव न कर बैठे। इसीलिए उन्होंने ममता को दगडूशेठ हलवाई गणपति के संस्थापक को दे दिया। ममता भी एक समझदार बच्ची थी और उसने इस निर्णय में हमेशा अपनी माँ का साथ दिया। सिंधुताई अब भजन गाने के साथ साथ भाषण भी देने लगी थी और धीरे धीरे लोकप्रिय होने लगी थी।
अब तक वो 1400 से अधिक बच्चों को अपना चुकी हैं. वो उन्हें पढ़ाती है, उनकी शादी कराती हैं और जिन्दगी को नए सिरे से शुरू करने में मदद करती हैं. ये सभी बच्चे उन्हें माई कहकर बुलाते हैं. बच्चों में भेदभाव न हो जाए इसलिए उन्होंने अपनी बेटी किसी और को दे दी. आज उनकी बेटी बड़ी हो चुकी है और वो भी एक अनाथालय चलाती है.कुछ वक्त बाद उनका पति उनके पास लौट आया और उन्होंने उसे माफ करते हुए अपने सबसे बड़े बेटे के तौर पर स्वीकार भी कर लिया ।
राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय समेत करीब 172 अवॉर्ड पा चुकीं ताई आज भी अपने बच्चों को पालने के लिए किसी के आगे हाथ फैलाने से नहीं चूकतीं। वे कहती हैं कि मांगकर यदि इतने बच्चों का लालन-पालन हो सकता है तो इसमें कोई हर्ज नहीं। सभी बच्चों को वे अपना बेटा या बेटी मानती हैं और उनके लिए किसी में कोई भेद नहीं। रेलवे स्टेशन पर मिला वो पहला बच्चा आज उनका सबसे बड़ा बेटा है और पांचों आश्रमों का प्रबंधन उसके कंधों पर हैं। अपनी 272 बेटियों का वे धूमधाम से विवाह कर चुकी हैं और परिवार में 36 बहुएं भी आ चुकी हैं।
सिंधुताई के लिए समाजसेवा यह शब्द अनजान है क्योंकि वे यह मानती ही नहीं कि वे ऐसा कुछ कर रही हैं उनके अनुसार समाजसेवा बोल कर नहीं की जाती। इसके लिए विशेष प्रयत्न भी करने की जरुरत नहीं अनजाने में आपके द्वारा की गई सेवा ही समाजसेवा है। यह करते हुए मन में यह भाव नहीं आना चाहिए की आप समाजसेवा कर रहे हैं। मन में ठहराकर समाजसेवा नहीं होती। समाजसेवा जैसे शब्द को लेकर ही वे इतने सारे वाक्य एक के बाद एक बोल जाती हैं कि आपको लगता है कि यह महिला सही मायने में अन्नपूर्णा है या सरस्वती। इतने में वे एक बेहतरीन शेर भी सुना देती हैं और आप केवल दाद भर देने का काम करते हैं और समाज सेवा जैसे भारी शब्द भी सिंधुताई के आगे पानी भरते नजर आने लगते हैं।
विवाह और शुरुआत :
जब सिन्धुताई 10 साल की थी तब उनकी शादी 30 वर्षीय ‘श्रीहरी सपकाळ’ से हुई. जब उनकी उम्र 20 साल की थी तब वह 3 बच्चों कि माँ बनी थी. गाँववालों को उनकी मजदुरी के पैसे ना देनेवाले गाँव के मुखिया कि शिकायत सिन्धुताई ने जिल्हा अधिकारी से की थी. अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए मुखियाने श्रीहरी (सिन्धुताई के पती) को सिन्धुताई को घर से बाहर निकालने के लिए प्रवृत्त किया जब वे 9 महिने से गर्भवती थी. उसी रात उन्होने तबेले मे (गाय-भैंसों के रहने की जगह) मे एक बेटी को जन्म दिया.
जब वे अपनी माँ के घर गयी तब उनकी माँ ने उन्हे घर मे रहने से इंकार कर दिया (उनके पिताजी का देहांत हुआ था वरना वे अवश्य अपनी बेटी को सहारा देते). सिन्धुताई अपनी बेटी के साथ रेल्वे स्टेशन पे रहने लगी थी. पेट भरने के लिये भीक माँगती और रात को खुद को और बेटी को सुरक्षित रखने के लिये शमशान मे रहती. उनके इस संघर्षमयी काल मे उन्होंने यह अनुभव किया कि देश मे कितने सारे अनाथ बच्चे है जिनको एक माँ की जरुरत है. तब से उन्होने निर्णय लिया कि जो भी अनाथ उनके पास आएगा वह उनकी माँ बनेंगी. उन्होने अपनी खुद कि बेटी को ‘श्री दगडुशेठ हलवाई, पुणे, महाराष्ट्र’ ट्र्स्ट मे गोद दे दिया ताकि वे सारे अनाथ बच्चों की माँ बन सके ।
समाजकार्य और सिन्धुताईका परिवार :
सिन्धुताईने अपना पुरा जीवन अनाथ बच्चों के लिए समर्पित किया है। इसिलिए उन्हे "माई" (माँ) कहा जाता है। उन्होने १०५० अनाथ बच्चों को गोद लिया है। उनके परिवार मे आज २०७ दामाद और ३६ बहूएँ है। १००० से भी ज्यादा पोते-पोतियाँ है। उनकी खुद की बेटी वकील है और उन्होने गोद लिए बहोत सारे बच्चे आज डाक्टर, अभियंता, वकील है और उनमे से बहोत सारे खुदका अनाथाश्रम भी चलाते हैं।
सिन्धुताई को कुल २७३ राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए है जिनमे "अहिल्याबाई होऴकर पुरस्कार है जो स्रियाँ और बच्चों के लिए काम करनेवाले समाजकर्ताओंको मिलता है महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा। यह सारे पैसे वे अनाथाश्रम के लिए इस्तमाल करती है। उनके अनाथाश्रम पुणे, वर्धा, सासवड (महाराष्ट्र) मे स्थित है। २०१० साल मे सिन्धुताई के जीवन पर आधारित मराठी चित्रपट बनाया गया "मी सिन्धुताई सपकाळ", जो ५४ वे लंडन चित्रपट महोत्सव के लिए चुना गया था।
सिन्धुताई के पती जब 80 साल के हो गये तब वे उनके साथ रहने के लिए आए। सिन्धुताई ने अपने पति को एक बेटे के रूप मे स्वीकार किया ये कहते हुए कि अब वो सिर्फ एक माँ है। आज वे बडे गर्व के साथ बताती है कि वो (उनके पति) उनका सबसे बडा बेटा है। सिन्धुताई कविता भी लिखती है। और उनकी कविताओं मे जीवन का पूरा सार होता है।
महिला दिवस विशेष 1400 बच्चो की माँ
शमशान की चिता पे रोटी पका के बच्चो को पाला ।
सिंधुताई अपने और अपनी बच्ची की भूख मिटाने के लिए ट्रेन में गा गाकर भीख मांगने लगी। जल्द ही उसने देखा कि स्टेशन पर और भी कई बेसहारा बच्चे है जिनका कोई नहीं है। सिंधुताई अब उनकी भी माई बन गयी। भीख मांगकर जो कुछ भी उन्हें मिलता, वे उन सब बच्चों में बाँट देती। कुछ समय तक तो वो शमशान में रहती रही, वही फेंके हुए कपडे पहनती रही। फिर कुछ आदिवासियों से उनकी पहचान हो गयी।
वे उनके हक़ के लिए भी लड़ने लगी और एक बार तो उनकी लढाई लड़ने के लिए वे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक भी पहुँच गयी। अब वे और उनके बच्चे इन आदिवासियों के बनाये झोपड़े में रहने लगे। धीरे धीरे लोग सिंधुताई को माई के नाम से जानने लगे और स्वेच्छा से उनके अपनाये बच्चों के लिए दान देने लगे।
अब इन बच्चों का अपना घर भी बन चूका था। धीरे धीरे सिंधुताई और भी बच्चों की माई बनने लगी। ऐसे में उन्हें लगा कि कही उनकी अपनी बच्ची, ममता के रहते वे उनके गोद लिए बच्चों के साथ भेदभाव न कर बैठे। इसीलिए उन्होंने ममता को दगडूशेठ हलवाई गणपति के संस्थापक को दे दिया। ममता भी एक समझदार बच्ची थी और उसने इस निर्णय में हमेशा अपनी माँ का साथ दिया। सिंधुताई अब भजन गाने के साथ साथ भाषण भी देने लगी थी और धीरे धीरे लोकप्रिय होने लगी थी।
अब तक वो 1400 से अधिक बच्चों को अपना चुकी हैं. वो उन्हें पढ़ाती है, उनकी शादी कराती हैं और जिन्दगी को नए सिरे से शुरू करने में मदद करती हैं. ये सभी बच्चे उन्हें माई कहकर बुलाते हैं. बच्चों में भेदभाव न हो जाए इसलिए उन्होंने अपनी बेटी किसी और को दे दी. आज उनकी बेटी बड़ी हो चुकी है और वो भी एक अनाथालय चलाती है.कुछ वक्त बाद उनका पति उनके पास लौट आया और उन्होंने उसे माफ करते हुए अपने सबसे बड़े बेटे के तौर पर स्वीकार भी कर लिया ।
राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय समेत करीब 172 अवॉर्ड पा चुकीं ताई आज भी अपने बच्चों को पालने के लिए किसी के आगे हाथ फैलाने से नहीं चूकतीं। वे कहती हैं कि मांगकर यदि इतने बच्चों का लालन-पालन हो सकता है तो इसमें कोई हर्ज नहीं। सभी बच्चों को वे अपना बेटा या बेटी मानती हैं और उनके लिए किसी में कोई भेद नहीं। रेलवे स्टेशन पर मिला वो पहला बच्चा आज उनका सबसे बड़ा बेटा है और पांचों आश्रमों का प्रबंधन उसके कंधों पर हैं। अपनी 272 बेटियों का वे धूमधाम से विवाह कर चुकी हैं और परिवार में 36 बहुएं भी आ चुकी हैं।
सिंधुताई के लिए समाजसेवा यह शब्द अनजान है क्योंकि वे यह मानती ही नहीं कि वे ऐसा कुछ कर रही हैं उनके अनुसार समाजसेवा बोल कर नहीं की जाती। इसके लिए विशेष प्रयत्न भी करने की जरुरत नहीं अनजाने में आपके द्वारा की गई सेवा ही समाजसेवा है। यह करते हुए मन में यह भाव नहीं आना चाहिए की आप समाजसेवा कर रहे हैं। मन में ठहराकर समाजसेवा नहीं होती। समाजसेवा जैसे शब्द को लेकर ही वे इतने सारे वाक्य एक के बाद एक बोल जाती हैं कि आपको लगता है कि यह महिला सही मायने में अन्नपूर्णा है या सरस्वती। इतने में वे एक बेहतरीन शेर भी सुना देती हैं और आप केवल दाद भर देने का काम करते हैं और समाज सेवा जैसे भारी शब्द भी सिंधुताई के आगे पानी भरते नजर आने लगते हैं।
विवाह और शुरुआत :
जब सिन्धुताई 10 साल की थी तब उनकी शादी 30 वर्षीय ‘श्रीहरी सपकाळ’ से हुई. जब उनकी उम्र 20 साल की थी तब वह 3 बच्चों कि माँ बनी थी. गाँववालों को उनकी मजदुरी के पैसे ना देनेवाले गाँव के मुखिया कि शिकायत सिन्धुताई ने जिल्हा अधिकारी से की थी. अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए मुखियाने श्रीहरी (सिन्धुताई के पती) को सिन्धुताई को घर से बाहर निकालने के लिए प्रवृत्त किया जब वे 9 महिने से गर्भवती थी. उसी रात उन्होने तबेले मे (गाय-भैंसों के रहने की जगह) मे एक बेटी को जन्म दिया.
जब वे अपनी माँ के घर गयी तब उनकी माँ ने उन्हे घर मे रहने से इंकार कर दिया (उनके पिताजी का देहांत हुआ था वरना वे अवश्य अपनी बेटी को सहारा देते). सिन्धुताई अपनी बेटी के साथ रेल्वे स्टेशन पे रहने लगी थी. पेट भरने के लिये भीक माँगती और रात को खुद को और बेटी को सुरक्षित रखने के लिये शमशान मे रहती. उनके इस संघर्षमयी काल मे उन्होंने यह अनुभव किया कि देश मे कितने सारे अनाथ बच्चे है जिनको एक माँ की जरुरत है. तब से उन्होने निर्णय लिया कि जो भी अनाथ उनके पास आएगा वह उनकी माँ बनेंगी. उन्होने अपनी खुद कि बेटी को ‘श्री दगडुशेठ हलवाई, पुणे, महाराष्ट्र’ ट्र्स्ट मे गोद दे दिया ताकि वे सारे अनाथ बच्चों की माँ बन सके ।
समाजकार्य और सिन्धुताईका परिवार :
सिन्धुताईने अपना पुरा जीवन अनाथ बच्चों के लिए समर्पित किया है। इसिलिए उन्हे "माई" (माँ) कहा जाता है। उन्होने १०५० अनाथ बच्चों को गोद लिया है। उनके परिवार मे आज २०७ दामाद और ३६ बहूएँ है। १००० से भी ज्यादा पोते-पोतियाँ है। उनकी खुद की बेटी वकील है और उन्होने गोद लिए बहोत सारे बच्चे आज डाक्टर, अभियंता, वकील है और उनमे से बहोत सारे खुदका अनाथाश्रम भी चलाते हैं।
सिन्धुताई को कुल २७३ राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए है जिनमे "अहिल्याबाई होऴकर पुरस्कार है जो स्रियाँ और बच्चों के लिए काम करनेवाले समाजकर्ताओंको मिलता है महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा। यह सारे पैसे वे अनाथाश्रम के लिए इस्तमाल करती है। उनके अनाथाश्रम पुणे, वर्धा, सासवड (महाराष्ट्र) मे स्थित है। २०१० साल मे सिन्धुताई के जीवन पर आधारित मराठी चित्रपट बनाया गया "मी सिन्धुताई सपकाळ", जो ५४ वे लंडन चित्रपट महोत्सव के लिए चुना गया था।
सिन्धुताई के पती जब 80 साल के हो गये तब वे उनके साथ रहने के लिए आए। सिन्धुताई ने अपने पति को एक बेटे के रूप मे स्वीकार किया ये कहते हुए कि अब वो सिर्फ एक माँ है। आज वे बडे गर्व के साथ बताती है कि वो (उनके पति) उनका सबसे बडा बेटा है। सिन्धुताई कविता भी लिखती है। और उनकी कविताओं मे जीवन का पूरा सार होता है।
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